श्री नृसिंह स्तोत्र

श्री नृसिंह स्तोत्र

भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार का यह कवच / स्तोत्र अत्यंत चमत्कारी प्रभाव देने वाला है। नरसिंह कवच / स्तोत्र संरक्षण पाने के लिए बहुत शक्तिशाली कवच है। नरसिंह कवच एक सुरक्षा कवच / स्तोत्र या आध्यात्मिक कवच है। नरसिंह कवच / स्तोत्र बुरी आत्माओं से सुरक्षा और भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के साथ-साथ भक्ति और शांति में वृद्धि के लिए मंत्र है। भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार का यह कवच / स्तोत्र अत्यंत चमत्कारी प्रभाव देने वाला है।

नरसिंह कवच संरक्षण पाने के लिए बहुत शक्तिशाली कवच / स्तोत्र है। नरसिंह कवच / स्तोत्र एक सुरक्षा कवच या आध्यात्मिक कवच है। नरसिंह कवच बुरी आत्माओं से सुरक्षा और भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के साथ-साथ भक्ति और शांति में वृद्धि के लिए मंत्र है। नरसिंह कवच का जप एक व्यक्ति की व्यक्तिगत कुंडली के अंदर की नकारात्मक ऊर्जा और कर्म संरचनाओं को शुद्ध करता है और सभी प्रकार की शुभता को प्रकट करता है।

नरसिंह कवच / स्तोत्र सबसे पवित्र हैं, सभी प्रकार की बाधाओं को खत्म कर देते हैं और सभी को सुरक्षा प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति इसका नियमित जप करता है, वह काले जादू, तंत्र, भूत, आत्माओं, नकारात्मक विचारों, व्यसनों और अन्य हानिकारक चीजों से छुटकारा पाता है। नरसिंह कवच, ब्रह्मानंद पुराण का एक शक्तिशाली मंत्र है, जिसे महाराजा प्रह्लाद महाराज द्वारा कृत किया गया था।

ऐसा कहा जाता है कि जो इस मंत्र का जाप करता है, उसे सभी प्रकार के गुणों से युक्त किया जाता है और उसे स्वर्ग के ग्रहों से ऊपर का स्थान मिलता है ! नरसिंह कवच / स्तोत्र सभी मंत्रों (मंत्र-राज) का राजा है। इस कवच के उच्चारण से ही अति शुभ और अति शीग्र फल मिलता है !

स्तोत्र

कुन्देन्दुशङ्खवर्णः कृतयुगभगवान्पद्मपुष्पप्रदाता

त्रेतायां काञ्चनाभिः पुनरपि समये द्वापरे रक्तवर्णः ।

शङ्को सम्प्राप्तकाले कलियुगसमये नीलमेघश्च नाभा

प्रद्योतसृष्टिकर्ता परबलमदनः पातु मां नारसिंहः ॥ १ ॥

नासाग्रं पीनगण्डं परबलमदनं बद्धकेयुरहारं

वज्रं दंष्ट्राकरालं परिमितगणनः कोटिसूर्याग्नितेजः ।

गांभीर्यं पिङ्गलाक्षं भ्रुकिटतमुखं केशकेशार्धभागं

वन्दे भीमाट्टहासं त्रिभुवनजयः पातु मां नारसिंहः ॥ २ ॥

पादद्वन्द्वं धरित्र्यां पटुतरविपुलं मेरुमध्याह्नसेतुं

नाभिं ब्रह्माण्डसिन्धो हृदयमभिमुखं भूतविद्वांसनेतः ।

आहुश्चक्रं तस्य बाहुं कुलिशनखमुखं चन्द्रसूर्याग्निनेत्रम् ।

वक्त्रं वह्न्यस्य विद्यस्सुरगणविनुतः पातु मां नारसिंहः ॥ ३ ॥

घोरं भीमं महोग्रं स्फटिककुटिलता भीमपालं पलाक्षं

चोर्ध्वं केशं प्रलयशशिमुखं वज्रदंष्ट्राकरालम् ।

द्वात्रिंशद्बाहुयुग्मं परिखगदात्रिशूलपाशपाण्यग्निधार

वन्दे भीमाट्टहासं लखगुणविजयः पातु मां नारसिंहः ॥ ४ ॥

गोकण्ठं दारुणान्तं वनवरविदिपी डिंडिडिंडोटडिंभं

डिंभं डिंभं डिडिंभं दहमपि दहमः झंप्रझंप्रेस्तु झंप्रैः ।

तुल्यस्तुल्यस्तुतुल्य त्रिघुम घुमघुमां कुङ्कुमां कुङ्कुमाङ्गं

इत्येवं नारसिंहं पूर्णचन्द्रं वहति कुकुभः पातु मां नारसिंहः ॥ ५ ॥

भूभृद्भूभुजङ्गं मकरकरकर प्रज्वलज्ज्वालमालं

खर्जर्जं खर्जखर्जं खजखजखजितं खर्जखर्जर्जयन्तम् ।

भोभागं भोगभागं गग गग गहनं कद्रुम धृत्य कण्ठं

स्वच्छं पुच्छं सुकच्छं स्वचितहितकरः पातु मां नारसिंहः ॥ ६ ॥

झुंझुंझुंकारकारं जटमटिजननं जानुरूपं जकारं

हंहंहं हंसरूपं हयशत ककुभं अट्टहासं विवेशम् ।

वंवंवं वायुवेगं सुरवरविनुतं वामनाक्षं सुरेशं

लंलंलं लालिताक्षं लखगुणविजयः पातु मां नारसिंहः ॥ ७ ॥

यं दृष्ट्वा नारसिंहं विकृतनखमुखं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं

पिङ्गाक्षं स्निग्धवर्णं जितवपुसदृशः कुंचिताग्रोग्रतेजाः ।

भीताश्चा दानवेन्द्रास्सुरभयविनुतिश्शक्तिनिर्मुक्तहस्तं

नाशास्यं किं कमेतं क्षपितजनकजः पातु मां नारसिंहः ॥ ८ ॥

श्रीवत्साङ्कं त्रिनेत्रं शशिधरधवलं चक्रहस्तं सुरेशं

वेदाङ्गं वेदनादं विनुततनुविदं वेदरूपं स्वरूपम् ।

होंहों होंकारकारं हुतवह नयनं प्रज्वलज्वाल पाक्षं

क्षंक्षंक्षं बीजरूपं नरहरि विनुतः पातु मां नारसिंहः ॥ ९ ॥

अहो वीर्यमहो शौर्यं महाबलपराक्रमम् ।

नारसिंहं महादेवं अहोबलमहाबलम् ॥ १० ॥

ज्वालाहोबलमालोलः क्रोडाकारं च भार्गवम् ।

योगानन्दश्चत्रवट पावना नवमूर्तये ॥ ११ ॥

श्रीमन्नृसिंह विभवे गरुडध्वजाय तापत्रयोपशमनाय भवौषधाय ।

तृष्णादि वृश्चिक जलाग्निभुजङ्ग रोग-क्लेशव्ययाय हरये गुरवे नमस्ते ॥

 इति श्री नृसिंह स्तोत्रं

श्री नृसिंह कवच

विनयोग

ॐ अस्य श्रीलक्ष्मीनृसिंह कवच महामंत्रस्य

ब्रह्माऋिषः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीनृसिंहोदेवता, ॐ

क्षौ बीजम्, ॐ रौं शक्तिः, ॐ ऐं क्लीं कीलकम्

मम सर्वरोग, शत्रु, चौर, पन्नग,

व्याघ्र, वृश्चिक, भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी-

शाकिनी, यन्त्र मंत्रादि, सर्व विघ्न निवाराणार्थे

श्री नृसिहं कवचमहामंत्र जपे विनयोगः।।

एक आचमन जल छोड़ दें।

अथ ऋष्यादिन्यास

ॐ ब्रह्माऋषये नमः शिरसि।

ॐ अनुष्टुप् छन्दसे नमो मुखे।

ॐ श्रीलक्ष्मी नृसिंह देवताये नमो हृदये।

ॐ क्षौं बीजाय नमोनाभ्याम्।

ॐ शक्तये नमः कटिदेशे।

ॐ ऐं क्लीं कीलकाय नमः पादयोः।

ॐ श्रीनृसिंह कवचमहामंत्र जपे विनयोगाय नमः सर्वाङ्गे॥

अथ करन्यास

ॐ क्षौं अगुष्ठाभ्यां नमः।

ॐ प्रौं तर्जनीभ्यां नमः।

ॐ ह्रौं मध्यमाभयां नमः।

ॐ रौं अनामिकाभ्यां नमः।

ॐ ब्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।

ॐ जौं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।

अथ हृदयादिन्यास

ॐ क्षौ हृदयाय नमः।

ॐ प्रौं शिरसे स्वाहा।

ॐ ह्रौं शिखायै वषट्।

ॐ रौं कवचाय हुम्।

ॐ ब्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।

ॐ जौं अस्त्राय फट्।

नृसिंह ध्यान

ॐ सत्यं ज्ञान सुखस्वरूप ममलं क्षीराब्धि मध्ये स्थित्।

योगारूढमति प्रसन्नवदनं भूषा सहस्रोज्वलम्।

तीक्ष्णं चक्र पीनाक शायकवरान् विभ्राणमर्कच्छवि।

छत्रि भूतफणिन्द्रमिन्दुधवलं लक्ष्मी नृसिंह भजे॥

कवच पाठ – 

ॐ नमोनृसिंहाय सर्व दुष्ट विनाशनाय सर्वंजन मोहनाय सर्वराज्यवश्यं कुरु कुरु स्वाहा।

ॐ नमो नृसिंहाय नृसिंहराजाय नरकेशाय नमो नमस्ते।

ॐ नमः कालाय काल द्रष्ट्राय कराल वदनाय च।

ॐ उग्राय उग्र वीराय उग्र विकटाय उग्र वज्राय वज्र देहिने रुद्राय रुद्र घोराय भद्राय भद्रकारिणे ॐ ज्रीं ह्रीं नृसिंहाय नमः स्वाहा !!

ॐ नमो नृसिंहाय कपिलाय कपिल जटाय अमोघवाचाय सत्यं सत्यं व्रतं महोग्र प्रचण्ड रुपाय।

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ॐ ह्रुं ह्रुं ह्रुं ॐ क्ष्रां क्ष्रीं क्ष्रौं फट् स्वाहा।

ॐ नमो नृसिंहाय कपिल जटाय ममः सर्व रोगान् बन्ध बन्ध, सर्व ग्रहान बन्ध बन्ध, सर्व दोषादीनां बन्ध बन्ध, सर्व वृश्चिकादिनां विषं बन्ध बन्ध, सर्व भूत प्रेत, पिशाच, डाकिनी शाकिनी, यंत्र मंत्रादीन् बन्ध बन्ध, कीलय कीलय चूर्णय चूर्णय, मर्दय मर्दय, ऐं ऐं एहि एहि, मम येये विरोधिन्स्तान् सर्वान् सर्वतो हन हन, दह दह, मथ मथ, पच पच, चक्रेण, गदा, वज्रेण भष्मी कुरु कुरु स्वाहा।

ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं ह्रीं क्ष्रीं क्ष्रीं क्ष्रौं नृसिंहाय नमः स्वाहा।

ॐ आं ह्रीं क्ष्रौं क्रौं ह्रुं फट्।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन नृसिंहाय मम विजय रुपे कार्ये ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल असाध्यमेनकार्य शीघ्रं साधय साधय एनं सर्व प्रतिबन्धकेभ्यः सर्वतो रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा।

ॐ क्षौं नमो भगवते नृसिंहाय एतद्दोषं प्रचण्ड चक्रेण जहि जहि स्वाहा।

ॐ नमो भगवते महानृसिंहाय कराल वदन दंष्ट्राय मम विघ्नान् पच पच स्वाहा।

ॐ नमो नृसिंहाय हिरण्यकश्यप वक्षस्थल विदारणाय त्रिभुवन व्यापकाय भूत-प्रेत पिशाच डाकिनी-शाकिनी कालनोन्मूलनाय मम शरीरं स्तम्भोद्भव समस्त दोषान् हन हन, शर शर, चल चल, कम्पय कम्पय, मथ मथ, हुं फट् ठः ठः।

ॐ नमो भगवते भो भो सुदर्शन नृसिंह ॐ आं ह्रीं क्रौं क्ष्रौं हुं फट्।

ॐ सहस्त्रार मम अंग वर्तमान ममुक रोगं दारय दारय दुरितं हन हन पापं मथ मथ आरोग्यं कुरु कुरु ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रुं ह्रुं फट् मम शत्रु हन हन द्विष द्विष तद पचयं कुरु कुरु मम सर्वार्थं साधय साधय।

ॐ नमो भगवते नृसिंहाय ॐ क्ष्रौं क्रौं आं ह्रीं क्लीं श्रीं रां स्फ्रें ब्लुं यं रं लं वं षं स्त्रां हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमः भगवते नृसिंहाय नमस्तेजस्तेजसे अविराभिर्भव वज्रनख वज्रदंष्ट्र कर्माशयान्  रंधय रंधय तमो ग्रस ग्रस ॐ स्वाहा।

अभयमभयात्मनि भूयिष्ठाः ॐ क्षौम्।

ॐ नमो भगवते तुभ्य पुरुषाय महात्मने हरिंऽद्भुत सिंहाय ब्रह्मणे परमात्मने।

ॐ उग्रं उग्रं महाविष्णुं सकलाधारं सर्वतोमुखम्।

नृसिंह भीषणं भद्रं मृत्युं मृत्युं नमाम्यहम्।

नरसिंह कवच मंत्र के फायदे

नरसिंह कवच मंत्र भक्तों के कल्याण की रक्षा के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है। यह एक सर्व अपारदर्शिता पर आधारित है और स्वर्गीय ग्रहों या मुक्ति के लिए या जीवन के उत्थान के लिए सहायक है । इसका जाप करते हुए ब्रह्मांड के भगवान नरसिंह का ध्यान करना चाहिए, जो एक स्वर्ण सिंहासन पर बैठा है।

“नरसिंह कवच दुनिया में बुराई और अत्याचार के खिलाफ अंतिम सुरक्षा है। इस नरसिंह कवच को स्मरण करने से भक्तों को किसी भी नुकसान से बचा जा सकता है और एक सुरक्षित,स्वस्थ और शांत और सामान्य जीवन प्रदान करता है।”

वह विजयी हो जाता है जो जीत की इच्छा रखता है, और वास्तव में एक विजेता बन जाता है। यह कवच सभी ग्रहों के उलटे प्रभाव को खत्म करता है और समाज में प्रतिष्ठा दिलवाता है ! जो नियमित रूप से इस प्रार्थना का जप करता है, चाहे एक या तीन बार (दैनिक), वह विजयी हो जाता है चाहे वह राक्षसों,दुश्मनों या मनुष्यों के बीच हो। हर प्रकार से रक्षा करता है !

यह नागों और बिच्छुओं के जहरीले प्रभाव के लिए सर्वोच्च उपाय है, इसके पाठ करने से भूत प्रेत और यमराज भी दूर चले जाते है। वह व्यक्ति, जो इस मंत्र का पाठ करता है, भगवान नरसिंह देव का ध्यान करता है, उसके पेट के रोग सहित उसके सभी रोग समाप्त हो जाते हैं।