भारत में स्थित सप्तश्रुंगी देवी मंदिर देवी सती के 52 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख स्थल है। यह महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है और धार्मिक, सांस्कृतिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। सप्तश्रुंगी देवी को सात पहाड़ियों की देवी कहा जाता है, जहाँ उनका वास है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार इस पवित्र स्थल का वर्णन पुराणों और शास्त्रों में विस्तार से किया गया है, और यह न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि कुंडली और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
सप्तश्रुंगी देवी का धार्मिक महत्व
सप्तश्रुंगी देवी का मंदिर सात पहाड़ियों के बीच स्थित है, जो उनकी शक्ति का प्रतीक है। ‘सप्त’ का अर्थ होता है सात, और ‘श्रृंग’ का अर्थ होता है पहाड़ या पर्वत। इस मंदिर में देवी की मूर्ति को शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है। देवी को 18 भुजाओं वाली मूर्ति के रूप में पूजा जाता है, जिसमें हर हाथ में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं। मान्यता है कि इसी स्थल पर देवी ने महिषासुर का वध किया था, और इसी कारण उन्हें महिषासुर मर्दिनी के रूप में भी पूजा जाता है।
धार्मिक दृष्टिकोण से, सप्तश्रुंगी देवी की आराधना करने से सभी प्रकार की बाधाओं का नाश होता है। ज्योतिष के अनुसार यह स्थल विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान लाखों श्रद्धालुओं का केंद्र होता है, जो यहां देवी की कृपा प्राप्त करने आते हैं। देवी के इस रूप की पूजा करने से जीवन में उन्नति, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
सप्तश्रुंगी देवी का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सप्तश्रुंगी देवी की पूजा जीवन में आने वाली विभिन्न ग्रह बाधाओं और दोषों का निवारण करने में सहायक होती है। मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार विशेष रूप से, जिन जातकों की कुंडली में शत्रु ग्रहों का अशुभ प्रभाव होता है, उनके लिए सप्तश्रुंगी देवी की आराधना अत्यंत लाभकारी मानी जाती है।
राहु और केतु के अशुभ प्रभाव से मुक्ति:
जिन व्यक्तियों की कुंडली में राहु और केतु का नकारात्मक प्रभाव होता है, वे अक्सर मानसिक तनाव, भ्रम और अस्थिरता का सामना करते हैं। सप्तश्रुंगी देवी की पूजा से राहु और केतु के अशुभ प्रभाव शांत होते हैं और व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है। यह भी माना जाता है कि राहु की महादशा में सप्तश्रुंगी देवी की आराधना करने से जीवन की कठिनाइयों में कमी आती है।
शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का निवारण:
शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के समय जातक को जीवन में विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जैसे स्वास्थ्य समस्याएं, धन की हानि, और परिवारिक कष्ट। सप्तश्रुंगी देवी की आराधना से शनि के अशुभ प्रभावों में कमी आती है। नवरात्रि के दौरान सप्तश्रुंगी देवी की विशेष पूजा करने से शनि की दशा में शांति प्राप्त होती है और जीवन में स्थिरता आती है।
मंगल दोष और शत्रु बाधा निवारण:
जिन जातकों की कुंडली में मंगल दोष होता है, उन्हें जीवन में अकारण क्रोध, विवाद और संघर्ष का सामना करना पड़ता है। सप्तश्रुंगी देवी की पूजा करने से मंगल के अशुभ प्रभाव शांत होते हैं और जीवन में शांति और संतुलन प्राप्त होता है। इसके अलावा, सप्तश्रुंगी देवी की आराधना शत्रु बाधाओं का निवारण करती है और व्यक्ति को आत्मरक्षा की शक्ति प्रदान करती है।
चंद्रमा के कमजोर होने पर:
चंद्रमा का कुंडली में कमजोर होना व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। इसके कारण व्यक्ति को मानसिक तनाव, अवसाद, और भावनात्मक असंतुलन का सामना करना पड़ सकता है। सप्तश्रुंगी देवी की पूजा से चंद्र दोष का निवारण होता है और व्यक्ति को मानसिक शांति प्राप्त होती है।
सप्तश्रुंगी देवी की महिमा और शक्तिपीठों में स्थान
सप्तश्रुंगी देवी 52 शक्तिपीठों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। शक्तिपीठ वह स्थल हैं, जहाँ देवी सती के अंग गिरे थे, और यह स्थल देवी की विशेष ऊर्जा और शक्ति का केंद्र माने जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार सप्तश्रुंगी देवी का यह शक्तिपीठ देवी सती के दाहिने हाथ के गिरने से जुड़ा हुआ है, और इसी कारण इसे अत्यंत पवित्र स्थल माना जाता है।
52 शक्तिपीठों की यात्रा धार्मिक दृष्टिकोण से जीवन में उन्नति और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। यह माना जाता है कि इन स्थलों की यात्रा करने से ग्रहों के दोष शांत होते हैं और व्यक्ति को देवी की कृपा प्राप्त होती है। सप्तश्रुंगी देवी की यात्रा करने से व्यक्ति को विशेष रूप से मंगल और शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है।
सप्तश्रुंगी देवी के मंत्र और साधना

सप्तश्रुंगी देवी की आराधना के दौरान विशेष मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, जो व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। ज्योतिष के अनुसार नीचे कुछ प्रमुख मंत्र दिए जा रहे हैं, जो सप्तश्रुंगी देवी की कृपा प्राप्त करने में सहायक होते हैं:
सप्तश्रुंगी देवी मूल मंत्र:
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सप्तश्रृंगेयि नमः”
इस मंत्र का नियमित जाप करने से देवी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की कठिनाइयों का नाश होता है।
शत्रु बाधा निवारण मंत्र:
“ॐ दुर्गायै नमः”
इस मंत्र का 108 बार जाप करने से शत्रु बाधाओं से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति की रक्षा होती है।
राहु और केतु दोष निवारण मंत्र
“ॐ ह्रीं क्लीं राहवे केतवे नमः”
यह मंत्र राहु और केतु के दोषों से मुक्ति दिलाने में सहायक है और व्यक्ति को मानसिक शांति प्रदान करता है।
सप्तश्रुंगी देवी की पूजा विधि
सप्तश्रुंगी देवी की पूजा विधि अत्यंत सरल है, लेकिन इसे पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाना चाहिए। सप्तश्रुंगी देवी की पूजा में निम्नलिखित सामग्री का प्रयोग किया जाता है:
- लाल वस्त्र
- चंदन, कुमकुम और अक्षत
- लाल फूल, विशेषकर गुड़हल के फूल
- धूप और दीप
- नैवेद्य (फलों और मिठाइयों का भोग)
पूजा के दौरान सप्तश्रुंगी देवी के मंत्रों का जाप और दुर्गा सप्तशती का पाठ अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इसके अलावा, नवरात्रि के दौरान देवी की विशेष पूजा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और ग्रहों के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है।
सप्तश्रुंगी देवी का धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार देवी की आराधना जीवन में आने वाली कठिनाइयों का नाश करती है और व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक शांति प्रदान करती है। सप्तश्रुंगी देवी के इस शक्तिपीठ की यात्रा और पूजा से विशेष रूप से मंगल, शनि, राहु और केतु के दोषों का निवारण होता है। ज्योतिष के अनुसार देवी की कृपा से व्यक्ति को जीवन में उन्नति, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
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