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ज्योतिषीय दृष्टिकोण से रुद्राष्टकश्लोक का पाठ: शुभ समय और विधि

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ज्योतिषीय दृष्टिकोण से रुद्राष्टकश्लोक का पाठ: शुभ समय और विधि

रुद्राष्टकश्लोक एक प्राचीन और दिव्य मंत्र है, जो भगवान शिव की महिमा का वर्णन करता है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार इसे महाभारत के अंतर्गत लघु उपाख्यान में पाया जाता है और इसे एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र माना जाता है। रुद्राष्टकश्लोक का पाठ करने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि यह ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को भी कम करता है।

जब हम ज्योतिषीय दृष्टिकोण से रुद्राष्टकश्लोक का पाठ करने का विचार करते हैं, तो शुभ समय और विधि का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक होता है। साहू जी के अनुसार सही समय पर पाठ करने से मंत्र की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। इसलिए, हम इस लेख में शुभ समय, विधि और अन्य महत्वपूर्ण बातों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

रुद्राष्टकश्लोक का महत्व

रुद्राष्टकश्लोक का अर्थ है “रुद्र का आठ श्लोकों का स्तोत्र।” मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार यह स्तोत्र भगवान शिव की असीम कृपा को प्राप्त करने और उनके आशीर्वाद से सभी प्रकार की कठिनाइयों से मुक्ति पाने के लिए अत्यधिक प्रभावी माना जाता है। इसे विशेष रूप से मानसिक तनाव, आर्थिक समस्याओं और पारिवारिक विवादों से मुक्ति के लिए पढ़ा जाता है।

इस स्तोत्र के पाठ से न केवल भक्तों को मानसिक शांति मिलती है, बल्कि यह उनके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करता है। इसलिए, इसे नियमित रूप से पढ़ने की सलाह दी जाती है।

शुभ समय का चयन

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से, रुद्राष्टकश्लोक का पाठ करने के लिए कुछ विशेष समय और तिथियाँ होती हैं जो इसके प्रभाव को बढ़ाती हैं। ये समय ज्योतिषीय दृष्टिकोण से शुभ माने जाते हैं:

चतुर्दशी: चतुर्दशी तिथि भगवान शिव के लिए बहुत प्रिय मानी जाती है। इस दिन रुद्राष्टकश्लोक का पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

सोमवार: साहू जी के अनुसार सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन रुद्राष्टकश्लोक का पाठ करने से मानसिक शांति और समृद्धि का अनुभव होता है।

पूर्णिमा और अमावस्या: पूर्णिमा और अमावस्या के दिन भी रुद्राष्टकश्लोक का पाठ करना शुभ होता है। इन दिनों पाठ करने से मानसिक तनाव कम होता है और जीवन में सुख-शांति का संचार होता है।

शुभ नक्षत्र: ज्योतिषीय दृष्टिकोण से शुभ नक्षत्रों में पाठ करना अधिक फलदायी होता है। जैसे कि पुष्य, रोहिणी, और श्रवण नक्षत्र में रुद्राष्टकश्लोक का पाठ करना विशेष लाभदायक होता है।

पाठ विधि

रुद्राष्टकश्लोक का पाठ करने के लिए कुछ विशेष विधियाँ होती हैं जिन्हें ध्यान में रखना आवश्यक है:

स्थान का चयन: पाठ के लिए एक पवित्र और शांति वाली जगह का चयन करें। जहाँ आप बिना किसी विघ्न के ध्यान केंद्रित कर सकें।

शुद्धता: पाठ से पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें। यह आवश्यक है कि आप मानसिक और शारीरिक रूप से शुद्ध हों।

संकल्प लें: रुद्राष्टकश्लोक का पाठ शुरू करने से पहले अपने मन में संकल्प लें। आप किस उद्देश्य से पाठ कर रहे हैं, उसे स्पष्ट करें। यह संकल्प आपके मन को केंद्रित करने में मदद करेगा।

दीपक और धूप: साहू जी के अनुसार पाठ करते समय दीपक जलाना और धूप दिखाना शुभ होता है। यह भगवान शिव की कृपा को आकर्षित करता है।

माला का उपयोग: रुद्राष्टकश्लोक का पाठ माला के साथ करना शुभ माना जाता है। 108 बार इस स्तोत्र का पाठ करने के लिए जप माला का उपयोग करें।

ध्यान और मंत्र जप: पाठ के दौरान ध्यान केंद्रित करें और भगवान शिव की चित्र या मूर्ति के सामने बैठें। मन में शिव के प्रति भक्ति और श्रद्धा रखें।

प्रार्थना:

पाठ के अंत में भगवान शिव से प्रार्थना करें। साहू जी के अनुसार अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें।

पाठ का फल

रुद्राष्टकश्लोक का पाठ करने से भक्तों को अनेक लाभ होते हैं। इनमें से कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:

शांति और संतुलन प्राप्त होता है।

नकारात्मक ऊर्जा का निवारण होता है।

जीवन में सुख-शांति का संचार होता है।

ग्रहों के दुष्प्रभाव कम होते हैं।

स्वास्थ्य में सुधार और रोगों से मुक्ति मिलती है।

पारिवारिक संबंधों में सुधार

रुद्राष्टकश्लोक का पाठ एक शक्तिशाली साधना है जो भक्तों को मानसिक शांति और सुख की प्राप्ति में सहायक होती है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार ज्योतिषीय दृष्टिकोण से इसे सही समय और विधि के अनुसार पढ़ने पर इसके प्रभाव को कई गुना बढ़ाया जा सकता है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और शुभता का अनुभव होता है। भगवान शिव की कृपा से सभी भक्त अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं।

इसलिए, इसे अपने दैनिक जीवन में शामिल करें और भगवान शिव से कृपा प्राप्त करें।

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